जो कुछ किया साहिब किया
कबीर साहिब ने मगहर से काशी में रिहायशी कर ली थी। और वही सत्संग करना शुरू कर दिया था उनका उपदेश था कि मनुष्य को अपने अंदर ही परमात्मा की तलाश करनी चाहिए। बाहरी रीति-रिवाजों का पालन करने से मंदिरों और मस्जिदों में जा कर पूजा करने से कुछ हासिल नहीं हो सकता।
Kabir das Ki Shiksha se Maulvi Aur panditain Ko Jalan hona
उनकी यह शिक्षा पंडितों और मौलवियों के विचारों से बहुत भिन्न थी । इसलिए दोनों उनके कट्टर विरोधी हो गए लेकिन कबीर साहिब ने उनकी परवाह नहीं की। जो जिज्ञासु सच्चे परमार्थ की खोज में उनके पास आती आप खुले लफ्जों में उन्हें अपना उपदेश समझाते। धीरे-धीरे उनके शिष्यों की गिनती बढ़ती गई और कबीर साहिब का नाम दूर-दूर तक फैल गया। जब पंडितों और मौलवियों ने देखा कि उनके विरोध का कबीर साहिब पर कुछ असर नहीं हुआ तो उन्होंने उन को नीचा दिखाने के लिए एक योजना बनाई।
Kabir Das Ji Ki Badnaami ki koshish
उन्होंने काशी और उसके आसपास यह खबर फैला दी कि कबीर साहिब बहुत धनवान है और अमुक दिन एक धार्मिक पर्व पर बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे हैं जिसमें भोज भी किया जाएगा जो चाहे इसमें शामिल हो सकता है। जब कथित भोज का दिन आया तो क्या गरीब क्या अमीर हजारों लोग बड़े उत्साह के साथ कबीर की कुटिया की ओर चल पड़े। एक मामूली जुलाहे के पास इतने लोगों को इकट्ठा कराने के लिए ना तो धन था नाही सामान। इस मुश्किल से बचने के लिए कबीर साहिब शहर से बाहर बहुत दूर चले गए और एक पेड़ की छाया में मालिक के ध्यान में बैठ गए।
जैसे ही कबीर साहिब घर से बाहर निकले स्वयं परमात्मा ने उनके रूप में प्रकट होकर भोजन की व्यवस्था की और हजारों लोगों को स्वयं भोजन कराया। भोज के लिए आने वाला हर व्यक्ति यह कहते हुए लौटा धन्य है कबीर धन्य है । जैसे ही सांझ के अंधेरे में कबीर साहिब घर पहुंचे तो उन्हें सारा हाल मालूम हुआ आप खुशी में मालिक का शुक्र करते हुए कह उठे
ना कुछ किया ना कर सका ना करने योग शरीर जो कुछ किया साहिब किया ताते भैया कभी।